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प्रिय मित्रों ,
आज मैं आपके सामने अपने खुद के लिखे कुछ शेर प्रस्तुत कर रहा हूँ और इनका शीर्षक है – फितरत ए इंसान .
फितरत – ए- इंसान :
समय के साथ इंसान कि फितरत बदल जाती है और कभी जो अपने होते है उनसे भी बहुत दूर कर देती है और मैंने ज़िन्दगी में जो कुछ भी महसूस किया है वो अपने शेरों के माध्यम से आपके सामने रखना चाहता हूँ .
पैसा और उसका इंसानियत पे कितना प्रभाव होता है वो नीचे बयां किया है :
१) आज पैसों की ताकत का मुझे नज़दीक से एहसास हुआ ,
दूर हुई चाहत मेरे अपनों कि जबसे वक़्त मेरा नासाज़ हुआ ,
कल तक मेरे आंसूं में भी उन्हें दर्द ही महसूस हुआ ,
जबसे दौलत ने साथ क्या छोड़ा मैं तो अपनों के लिए भी मनहूस हुआ ………!!!
२) एक सवाल मेरी रूह से हर रोज़ टकराता है ,
इंसान पैसे पे गिरता है कि पैसा इंसान को गिराता है ,
दौर गुजरे मगर पैसा हर दौर का भगवन ही है ,
सच इतना ही है कि पैसा वही है गिरता इंसान ही है …..!!
दौर -ए मुफलिसी पे चन्द शेर :
३) जब अपनी मुफलिसी के अंधेरों में राहत का चिराग तलासते थे ,
मिला न कोई खुसनसीब जो दामन को थाम लेता ,
शायद मेरी फरियाद ही नहीं पहुची अपनी मंज़िल तक ,
वर्ना जिस शख्श से थी उम्मीद ज्यादा वो ही क्यूँ दगा देता …….!!
४) आरजू की बहुत हमने हौसलों को सम्भाला है ,
कि अब उम्मीद का दामन फिसलता है अंधेरों में ,
कि मौला सुन ले अब फरियाद दुरुस्त कर दे मुकद्दर को ,
देर इतनी न हो जाये कि मैं खुद को फ़ना कर दूँ ……..!!
दोस्तों अन्त में यही कहूंगा कि समय अच्छा हो या बुरा हो पर इंसान को उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए और हर साँस के साथ संघर्ष करना चाहिए क्यूंकि जीत उसी की होती है जो कोशिश करता है :
५) मैं लड़ता हूँ मुकद्दर से कि अब थोड़ा रहम कर दे ,
कटे है दिन मुश्किलों में कि अब खुशियों से घर भर दे ,
गमो के दौर ने इंसान को इतना सिखाया है ,
जुनून ए जीत हो जिसमे मुकद्दर उसने बनाया है ………!!
मुझे उम्मीद है कि आपको ज़िन्दगी कि ये सच्चाई कुछ सोचने पे मजबूर जरूर करेगी …….!!
आपका ,
हिमांशु विजय भट्ट
मुम्बई
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